प्यार नहीं दे पाऊँगा ओ कल्पवृक्ष की सोनजुही, ओ अमलताश की अमलकली, धरती के आतप से जलते, मन पर छाई निर्मल बदली, मैं तुमको मधुसदगन्ध युक्त संसार नहीं दे पाऊँगा, तुम मुझको करना माफ तुम्हे मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा। तुम कल्पवृक्ष का फूल और, मैं धरती का अदना गायक, तुम जीवन के उपभोग योग्य, मैं नहीं स्वयं अपने लायक, तुम नहीं अधूरी गजल शुभे, तुम शाम गान सी पावन हो, हिम शिखरों पर सहसा कौंधी, बिजुरी सी तुम मनभावन हो, इसलिये व्यर्थ शब्दों वाला व्यापार नहीं दे पाऊँगा, तुम मुझको करना माफ तुम्हे मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा। तुम जिस शय्या पर शयन करो, वह क्षीर सिन्धु सी पावन हो, जिस आँगन की हो मौलश्री, वह आँगन क्या वृंदावन हो, जिन अधरों का चुम्बन पाओ, वे अधर नहीं गंगातट हों, जिसकी छाया बन साथ रहो, वह व्यक्ति नहीं वंशीवट हो, पर मैं वट जैसा सघन छाँह विस्तार नहीं दे पाऊँगा, तुम मुझको करना माफ तुम्हे मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा। मै तुमको चाँद सितारों का, सौंपू उपहार भला कैसे, मैं यायावर बंजारा साँधू, सुर श्रंगार भला कैसे, मै जीवन के प्रश्नों से नाता तोड तुम्हारे साथ शुभे, बारूद बिछी धरती पर कर लूँ, दो पल प्या...
अमावस की काली रातों में अमावस की काली रातों में दिल का दरवाजा खुलता है, जब दर्द की काली रातों में गम आंसू के संग घुलता है, जब पिछवाड़े के कमरे में हम निपट अकेले होते हैं, जब घड़ियाँ टिक-टिक चलती हैं,सब सोते हैं, हम रोते हैं, जब बार-बार दोहराने से सारी यादें चुक जाती हैं, जब ऊँच-नीच समझाने में माथे की नस दुःख जाती है, तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है, और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है। जब पोथे खाली होते है, जब हर्फ़ सवाली होते हैं, जब गज़लें रास नही आती, अफ़साने गाली होते हैं, जब बासी फीकी धूप समेटे दिन जल्दी ढल जता है, जब सूरज का लश्कर छत से गलियों में देर से जाता है, जब जल्दी घर जाने की इच्छा मन ही मन घुट जाती है, जब कालेज से घर लाने वाली पहली बस छुट जाती है, जब बेमन से खाना खाने पर माँ गुस्सा हो जाती है, जब लाख मन करने पर भी पारो पढ़ने आ जाती है, जब अपना हर मनचाहा काम कोई लाचारी लगता है, तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है, और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है। जब कमरे में सन्नाटे की आवाज़ सुनाई देती है, जब दर्पण में आंखों के नीचे झ...