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पाँच-रत्न

महर्षि कपिल प्रतिदिन जिस मार्ग से गंगा स्नान के लिए जाया करते थे उसी रास्ते में एक विधवा ब्राह्मणी की झोपड़ी पड़ती थी । महामुनि जब भी उधर से निकलते विधवा या तो चरखा कातते मिलती या धान कूटते ।       मुनि कपिल को दया आई । उन्होंने उसके पास जाकर कहा ," मांँ ! मैं आश्रम का कुलपति कपिल हूंँ । मेरे कई शिष्य राजपरिवारों से संबंध रखते हैं , तुम चाहो तो तुम्हारे लिए आजीविका की स्थाई व्यवस्था कराई जा सकती है ।" ब्राह्मणी ने कहा ," देव ! आपकी इस दयालुता के लिए हार्दिक धन्यवाद । किंतु न तो मैं असहाय हूँ और न ही निर्धन । मेरे पास पाँच ऐसे रत्न हैं , जिनसे चाहूँ तो मैं स्वयं राजाओं जैसा जीवन प्राप्त कर सकती हूँ पर मैंने उसकी आवश्यकता अनुभव नहीं की ।" आश्चर्यचकित कपिल मुनि ने रत्न देखने चाहे । तभी विधवा के 5 बेटे विद्यालय से लौट आए । उन्होंने माँ के पैर छूकर कहा, " माँ ! हमने आज भी किसी से झूठ नहीं बोला , कटु वचन नहीं कहे , गुरुदेव ने जो सिखाया उसे पूरा किया।"  मुनि यह देखकर मुस्कुराते हुए बोले "माँ तुमने सत्य कहा था ।"