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मैं क्या हूँ ?

सर्वत्र हूँ मैं सर्वदा हूँ, काल का श्रंगार हूँ मैं, जन्म का आधार हूँ, भोर का प्रकाश हूँ मैं, स्याह काली रात हूँ। पुष्प कोमल स्पर्श हूँ, गांड़ीव का प्रहार हूँ, गीता का मैं सार हूँ, कुरान की अज़ान हूँ। स्वर्ग का सुकून हूँ मैं, पाताल की प्रताड़ना हूँ, नाश का विस्फोट हूँ मैं, सृजन की अवधारणा हूँ। कवि की मैं कल्पना हूँ, जीवन का सत्य भी मैं, ज्येष्ठ की तपिश हूँ मैं, श्रावण की फुहार भी मैं, चोर की व्‍यथा भी मैं, संपन्न की संपत्ति भी मैं, मृत की मैं आत्मा हूँ, जीव की उत्पत्ति भी मैं, द्रोण का गुरुमंत्र हूँ, शकुनि का षड्यंत्र भी मैं, एकलव्य की एकाग्रता हूँ, कर्ण का कवच भी मैं, मारीच का मृगछल हूँ, रावण का अहम् भी मैं, सिया की पवित्रता हूँ, राम सा लाचार भी मैं। मैं ही तो हूँ त्रिलोकधारी, मैं ही तो हूँ कल्याणकारी, नाश मेरे हाथ में है, मैं ही तो हूँ विनाशकारी। अनंत का भी अंत हूँ मैं, ब्रम्हांड का मैं छोर हूँ, शंख का भी नाद हूँ मैं, शांति का मैं शोर हूँ, जल पे भी मैं नाचता हूँ, वायु को मैं देखता हूँ, अग्नि में न जलता हूँ मैं, धरा को मैं धारता हूँ। खास का गुरूर हूँ मैं, आम की मै...