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मौलिक अधिकार

मौलिक अधिकारों को छह श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है-अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, समानता का अधिकार, शोषण के खिलाफ अधिकार, धर्म का स्वतंत्रता का अधिकार, सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार और संवैधानिक उपचार का अधिकार।  इन मौलिक अधिकारों की परिकल्पना भारतीय संविधान के भाग III (अनुच्छेद 12 से 35) में की गई है। भारतीय संसद प्रारंभ में, भारत के संविधान में 7 मौलिक अधिकार थे जो संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान से उधार लिए गए थे।  लेकिन बाद में, संपत्ति के अधिकार को समाप्त कर दिया गया था और अब केवल 6 मौलिक अधिकार हैं।  इस लेख में, हमने सभी मौलिक अधिकारों के बारे में विस्तार से बताया है। 1. समानता का अधिकार (कला। 14-18) अनुच्छेद 14 समानता के विचार का प्रतिनिधित्व करता है, जो कहता है कि राज्य किसी भी व्यक्ति को कानून के समक्ष समानता या भारत के क्षेत्र के भीतर कानूनों के समान संरक्षण से इनकार नहीं करेगा।  दौड़, रंग या राष्ट्रीयता की परवाह किए बिना कानून के समक्ष समानता की गारंटी सभी को है।  (अनुच्छेद १५):  धर्म, जाति, जाति, लिं...

राहत इंदौरी की प्रसिद्ध ग़ज़ले

ख़फ़ा होना ज़रा सी बात पर तलवार हो जाना  मगर फिर ख़ुद-ब-ख़ुद वो आप का गुलनार हो जाना  किसी दिन मेरी रुस्वाई का ये कारण न बन जाए  तुम्हारा शहर से जाना मिरा बीमार हो जाना  वो अपना जिस्म सारा सौंप देना मेरी आँखों को  मिरी पढ़ने की कोशिश आप का अख़बार हो जाना  कभी जब आँधियाँ चलती हैं हम को याद आता है  हवा का तेज़ चलना आप का दीवार हो जाना  बहुत दुश्वार है मेरे लिए उस का तसव्वुर भी  बहुत आसान है उस के लिए दुश्वार हो जाना  किसी की याद आती है तो ये भी याद आता है  कहीं चलने की ज़िद करना मिरा तय्यार हो जाना  कहानी का ये हिस्सा अब भी कोई ख़्वाब लगता है  तिरा सर पर बिठा लेना मिरा दस्तार हो जाना  मोहब्बत इक न इक दिन ये हुनर तुम को सिखा देगी  बग़ावत पर उतरना और ख़ुद-मुख़्तार हो जाना  नज़र नीची किए उस का गुज़रना पास से मेरे  ज़रा सी देर रुकना फिर सबा-रफ़्तार हो जाना 

ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं

ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं है अपना ये त्यौहार नहीं है अपनी ये तो रीत नहीं है अपना ये व्यवहार नहीं धरा ठिठुरती है सर्दी से आकाश में कोहरा गहरा है बाग़ बाज़ारों की सरहद पर सर्द हवा का पहरा है सूना है प्रकृति का आँगन कुछ रंग नहीं , उमंग नहीं हर कोई है घर में दुबका हुआ नव वर्ष का ये कोई ढंग नहीं चंद मास अभी इंतज़ार करो निज मन में तनिक विचार करो नये साल नया कुछ हो तो सही क्यों नक़ल में सारी अक्ल बही उल्लास मंद है जन -मन का आयी है अभी बहार नहीं ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं है अपना ये त्यौहार नहीं ये धुंध कुहासा छंटने दो रातों का राज्य सिमटने दो प्रकृति का रूप निखरने दो फागुन का रंग बिखरने दो प्रकृति दुल्हन का रूप धार जब स्नेह – सुधा बरसायेगी शस्य – श्यामला धरती माता घर -घर खुशहाली लायेगी तब चैत्र शुक्ल की प्रथम तिथि नव वर्ष मनाया जायेगा आर्यावर्त की पुण्य भूमि पर जय गान सुनाया जायेगा युक्ति – प्रमाण से स्वयंसिद्ध नव वर्ष हमारा हो प्रसिद्ध आर्यों की कीर्ति सदा -सदा नव वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा अनमोल विरासत के धनिकों को चाहिये कोई उधार नहीं ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं है अपना ये त्यौहार नहीं...