सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

भारतीय स्वतंत्रता का इतिहास (History of Indian Independence)

यूरोपीय व्यापारियों ने 17वीं सदी से ही भारतीय उपमहाद्वीपमें पैर जमाना आरम्भ कर दिया था। अपनी सैन्य शक्ति में बढ़ोतरी करते हुए ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने 18वीं सदी के अन्त तक स्थानीय राज्यों को अपने वशीभूत करके अपने आप को स्थापित कर लिया था। 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के बाद भारत सरकार अधिनियम 1858 के अनुसार भारत पर सीधा आधिपत्य ब्रितानी ताज (ब्रिटिश क्राउन) अर्थात ब्रिटेन की राजशाही का हो गया। दशकों बाद नागरिक समाज ने धीरे-धीरे अपना विकास किया और इसके परिणामस्वरूप 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आई० एन० सी०) निर्माण हुआ।  प्रथम विश्वयुद्ध के बाद का समय ब्रितानी सुधारों के काल के रूप में जाना जाता है जिसमें मोंटेगू-चेम्सफोर्ड सुधार गिना जाता है लेकिन इसे भी रोलेट एक्ट की तरह दबाने वाले अधिनियम के रूप में देखा जाता है जिसके कारण स्वरुप भारतीय समाज सुधारकों द्वारा स्वशासन का आवाहन किया गया। इसके परिणामस्वरूप महात्मा गांधी के नेतृत्व में असहयोग और सविनय अवज्ञा आंदोलनों तथा राष्ट्रव्यापी अहिंसक आंदोलनों की शुरूआत हो गयी।


1930 के दशक के दौरान ब्रितानी कानूनों में धीरे-धीरे सुधार जारी रहे; परिणामी चुनावों में कांग्रेस ने जीत दर्ज की। अगला दशक काफी राजनीतिक उथल पुथल वाला रहा: द्वितीय विश्व युद्ध में भारत की सहभागिता, कांग्रेस द्वारा असहयोग का अन्तिम फैसला और अखिल भारतीय मुस्लिम लीग द्वारा मुस्लिम राष्ट्रवाद का उदय। 1947 में स्वतंत्रता के समय तक राजनीतिक तनाव बढ़ता गया। इस उपमहाद्वीप के आनन्दोत्सव का अंत भारत और पाकिस्तान के विभाजन के रूप में हुआ।


स्वतंत्रता से पहले स्वतंत्रता दिवस


1929 लाहौर सत्र में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने पूर्ण स्वराजघोषणा की और 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस के रूप में घोषित किया। कांग्रेस ने भारत के लोगों से सविनय अवज्ञा करने के लिए स्वयं प्रतिज्ञा करने व पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्ति तक समय-समय पर जारी किए गए कांग्रेस के निर्देशों का पालन करने के लिए कहा।


इस तरह के स्वतंत्रता दिवस समारोह का आयोजन भारतीय नागरिकों के बीच राष्ट्रवादी ईधन झोंकने के लिये किया गया व स्वतंत्रता देने पर विचार करने के लिए ब्रिटिश सरकार को मजबूर करने के लिए भी किया गया। कांग्रेस ने 1930 और 1956 के बीच 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया। इसमें लोग मिलकर स्वतंत्रता की शपथ लेते थे। जवाहरलाल नेहरू ने अपनी आत्मकथा में इनका वर्णन किया है कि ऐसी बैठकें किसी भी भाषण या उपदेश के बिना, शांतिपूर्ण व गंभीर होती थीं। गांधी जी ने कहा कि बैठकों के अलावा, इस दिन को, कुछ रचनात्मक काम करने में खर्च किया जाये जैसे कताई कातना या हिंदुओं और मुसलमानों का पुनर्मिलन या निषेध काम, या अछूतों की सेवा। 1947 में वास्तविक आजादी के बाद , भारत का संविधान 26 जनवरी 1950 को प्रभाव में आया; तब के बाद से 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है।


तात्कालिक पृष्ठभूमि


सन् 1946 में, ब्रिटेन की लेबर पार्टी की सरकार का राजकोष, हाल ही में समाप्त हुए द्वितीय विश्व युद्ध के बाद खस्ताहाल था। तब उन्हें एहसास हुआ कि न तो उनके पास घर पर जनादेश था और न ही अंतर्राष्ट्रीय समर्थन। इस कारण वे तेजी से बेचैन होते भारत को नियंत्रित करने के लिए देसी बलों की विश्वसनीयता भी खोते जा रहे थे। फ़रवरी 1947 में प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली ने ये घोषणा की कि ब्रिटिश सरकार जून 1948 से ब्रिटिश भारत को पूर्ण आत्म-प्रशासन का अधिकार प्रदान करेगी। अंतिम वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने सत्ता हस्तांतरण की तारीख को आगे बढ़ा दिया क्योंकि उन्हें लगा कि, कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच लगातार विवाद के कारण अंतरिम सरकार का पतन हो सकता है। उन्होंने सत्ता हस्तांतरण की तारीख के रूप में, द्वितीय विश्व युद्ध, में जापान के आत्मसमर्पण की दूसरी सालगिरह 15 अगस्त को चुना। ब्रिटिश सरकार ने ब्रिटिश भारत को दो राज्यों में विभाजित करने के विचार को 3 जून 1947 को स्वीकार कर लिया व ये भी घोषित किया कि उत्तराधिकारी सरकारों को स्वतंत्र प्रभुत्व दिया जाएगा और ब्रिटिश राष्ट्रमंडल से अलग होने का पूर्ण अधिकार होगा।


यूनाइटेड किंगडम की संसद के भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 (10 और 11 जियो 6 सी. 30) के अनुसार 15 अगस्त 1947 से प्रभावी (अब बांग्लादेश सहित) ब्रिटिश भारत को भारत और पाकिस्तान नामक दो नए स्वतंत्र उपनिवेशों में विभाजित किया और नए देशों के संबंधित घटक असेंबलियों को पूरा संवैधानिक अधिकार दे दिया।18 जुलाई 1947 को इस अधिनियम को शाही स्वीकृति प्रदान की गयी।


स्वतंत्रता व बंटवारा


15 अगस्त 1947 को हिन्दुस्तान टाईम्ससमाचार पत्र मे भारत की स्‍वतंत्रता की घोषणा।


सुबह 08.30 बजे – गवर्नमेंट हाउस पर गवर्नर जनरल और मंत्रियों का शपथ समारोह
सुबह 09.40 बजे – संवैधानिक सभा की और मंत्रियों का प्रस्थान
सुबह 09.50 बजे – संवैधानिक सभा तक स्टेट ड्राइव
सुबह 09.55 बजे – गवर्नर जनरल को शाही सलाम
सुबह 10.30 बजे – संवैधानिक सभा में राष्ट्रीय ध्वज को फहराना
सुबह 10.35 बजे – गवर्नमेंट हाउस तक स्टेट ड्राइव
सायं 06.00 बजे – इंडिया गेट पर झंडा समारोह
सायं 07.00 बजे – प्रकाश
सायं 07.45 बजे – आतिश बाज़ी प्रदर्शन
सायं 08.45 बजे – गवर्नमेंट हाउस पर आधिकारिक रात्रि भोज (डिनर)
रात्रि 10.15 बजे – गवर्नमेंट हाउस पर स्वागत समारोह


15 अगस्त 1947 के दिन का प्रोग्राम 

लाखों मुस्लिमसिख और हिन्दू शरणार्थियों ने स्वतंत्रता के बाद तैयार नयी सीमाओं को पैदल पार कर सफर तय किया। पंजाब जहाँ सीमाओं ने सिख क्षेत्रों को दो हिस्सों में विभाजित किया, वहां बड़े पैमाने पर रक्तपात हुआ, बंगालव बिहार में भी हिंसा भड़क गयी पर महात्मा गांधी की उपस्थिति ने सांप्रदायिक हिंसा को कम किया। नई सीमाओं के दोनों ओर 2 लाख 50 हज़ार से 10 लाख लोग हिंसा में मारे गए। पूरा देश स्वतंत्रता दिवस मना रहा था, वहीं, गांधी जी नरसंहार को रोकने की कोशिश में कलकत्ता में रुक गए, पर 14 अगस्त 1947, को पाकिस्तान का स्वतंत्रता दिवस घोषित हुआ और पाकिस्तान नामक नया देश अस्तित्व में आया; मुहम्मद अली जिन्ना ने कराची में पहले गवर्नर जनरल के रूप में शपथ ली।


भारत की संविधान सभा ने नई दिल्ली में संविधान हॉल में 14 अगस्त को 11 बजे अपने पांचवें सत्र की बैठक की।सत्र की अध्यक्षता राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने की। इस सत्र में जवाहर लाल नेहरू ने भारत की आजादी की घोषणा करते हुए ट्रिस्ट विद डेस्टिनी नामक भाषण दिया।


सभा के सदस्यों ने औपचारिक रूप से देश की सेवा करने की शपथ ली। महिलाओं के एक समूह ने भारत की महिलाओं का प्रतिनिधित्व किया व औपचारिक रूप से विधानसभा को राष्ट्रीय ध्वज भेंट किया।आधिकारिक समारोह नई दिल्ली में हुए जिसके बाद भारत एक स्वतंत्र देश बन गया। नेहरू ने प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में पद ग्रहण किया, और वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने पहले गवर्नर जनरल के रूप में अपना पदभार संभाला। महात्मा गांधी के नाम के साथ लोगों ने इस अवसर को मनाया। गांधी ने हालांकि खुद आधिकारिक घटनाओं में कोई हिस्सा नहीं लिया। इसके बजाय, उन्होंने हिंदू और मुसलमानों के बीच शांति को प्रोत्साहित करने के लिए कलकत्ता में एक भीड़ से बात की, उस दौरान ये 24 घंटे उपवास पर रहे।


15 अगस्‍त 1947 को सुबह 11:00 बजे संघटक सभा ने भारत की स्‍वतंत्रता का समारोह आरंभ किया, जिसमें अधिकारों का हस्‍तांतरण किया गया। जैसे ही मध्‍यरात्रि की घड़ी आई भारत ने अपनी स्‍वतंत्रता हासिल की और एक स्‍वतंत्र राष्‍ट्र बन गया।


जवाहरलाल नेहरू ट्रिस्ट विद डेस्टिनी भाषण देते हुए


स्‍वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने इस दिन ट्रिस्ट विद डेस्टिनी (नियति से वादा) नामक अपना प्रसिद्ध भाषण दिया:


कई सालों पहले, हमने नियति से एक वादा किया था, और अब समय आ गया है कि हम अपना वादा निभायें, पूरी तरह न सही पर बहुत हद तक तो निभायें। आधी रात के समय, जब दुनिया सो रही होगी, भारत जीवन और स्वतंत्रता के लिए जाग जाएगा। ऐसा क्षण आता है, मगर इतिहास में विरले ही आता है, जब हम पुराने से बाहर निकल नए युग में कदम रखते हैं, जब एक युग समाप्त हो जाता है, जब एक देश की लम्बे समय से दबी हुई आत्मा मुक्त होती है। यह संयोग ही है कि इस पवित्र अवसर पर हम भारत और उसके लोगों की सेवा करने के लिए तथा सबसे बढ़कर मानवता की सेवा करने के लिए समर्पित होने की प्रतिज्ञा कर रहे हैं।... आज हम दुर्भाग्य के एक युग को समाप्त कर रहे हैं और भारत पुनः स्वयं को खोज पा रहा है। आज हम जिस उपलब्धि का उत्सव मना रहे हैं, वो केवल एक क़दम है, नए अवसरों के खुलने का। इससे भी बड़ी विजय और उपलब्धियां हमारी प्रतीक्षा कर रही हैं। भारत की सेवा का अर्थ है लाखों-करोड़ों पीड़ितों की सेवा करना। इसका अर्थ है निर्धनता, अज्ञानता, और अवसर की असमानता मिटाना। हमारी पीढ़ी के सबसे महान व्यक्ति की यही इच्छा है कि हर आँख से आंसू मिटे। संभवतः ये हमारे लिए संभव न हो पर जब तक लोगों कि आंखों में आंसू हैं, तब तक हमारा कार्य समाप्त नहीं होगा। आज एक बार फिर वर्षों के संघर्ष के बाद, भारत जागृत और स्वतंत्र है। भविष्य हमें बुला रहा है। हमें कहाँ जाना चाहिए और हमें क्या करना चाहिए, जिससे हम आम आदमी, किसानों और श्रमिकों के लिए स्वतंत्रता और अवसर ला सकें, हम निर्धनता मिटा, एक समृद्ध, लोकतान्त्रिक और प्रगतिशील देश बना सकें। हम ऐसी सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक संस्थाओं को बना सकें जो प्रत्येक स्त्री-पुरुष के लिए जीवन की परिपूर्णता और न्याय सुनिश्चित कर सके?कोई भी देश तब तक महान नहीं बन सकता जब तक उसके लोगों की सोच या कर्म संकीर्ण हैं।


— ट्रिस्ट विद डेस्टिनी भाषण के अंश, जवाहरलाल नेहरू


इस भाषण को 20वीं सदी के महानतम भाषणों में से एक माना जाता है।


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

भूगोल की तकनीकें । (Techniques of Geography)

तकनीक       के रूप में स्थानिक अंतर्संबंधों इस सारक विज्ञान के लिए महत्वपूर्ण हैं, नक्शे एक महत्वपूर्ण उपकरण हैं । क्लासिकल मानचित्रोग्राफी को भौगोलिक विश्लेषण, कंप्यूटर आधारित भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस) के लिए और अधिक आधुनिक दृष्टिकोण से जोड़ा गया है। अपने अध्ययन में, भूगर्भकारियों ने चार सम्बन्धित दृष्टिकोण का उपयोग किया है: व्यवस्थित - श्रेणियों में भौगोलिक ज्ञान समूह, जिन्हें विश्व स्तर पर खोजा जा सकता है। क्षेत्रीय - ग्रह पर विशिष्ट क्षेत्र या स्थान के लिए श्रेणियों के बीच व्यवस्थित संबंधों की जांच करता है। वर्णनात्मक - बस सुविधाओं और आबादी के स्थान निर्दिष्ट करता है। विश्लेषणात्मक - हम एक विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र में सुविधाओं और आबादी क्यों खोजते हैं। नक्शानवीसी (कार्टोग्राफी)  : (न्यूजीलैंड के जेम्स कुक के 1770 चार्ट)              नक्शानुमति अमूर्त प्रतीकों (मानचित्र बनाने) के साथ पृथ्वी की सतह के प्रतिनिधित्व का अध्ययन करती है। हालांकि भूगोल के अन्य उप-विषयों अपने विश्लेषणों को प्रस्तुत कर...

भूगोल का इतिहास (History of Geography)

भूगोल का इतिहास सबसे पुराने ज्ञात विश्व मानचित्र 9 वीं शताब्दी ईसा पूर्व में प्राचीन बाबुल से प्रा प्त हैं। सबसे अच्छी बेबीलोनियाई दुनिया का नक्शा, हालांकि, इमागो मुंडी 600 ईसा पूर्व है। Eckhard Unger द्वारा पुनर्निर्मित के रूप में नक्शा बेबीलोन, आश्रय, उर्मर्टु और कई शहरों को देखने वाले एक परिपत्र भूमि के चारों ओर से घिरा हुआ है, के बदले में "कड़वा नदी" (ओशिनस) से घिरा हुआ है, जिसमें से सात द्वीपों के आसपास इसकी व्यवस्था है एक सात-पॉइंट स्टार बनाने के लिए साथ में छपाए हुए सागर के परे सात बाहरी क्षेत्रों का उल्लेख किया गया है। उनमें से पांच का विवरण बच गया है। इमागो मुंडी के विपरीत, 9वीं शताब्दी ईसा पूर्व के एक पूर्ववर्ती बेबीलोनियाई विश्व मानचित्र ने बाबुल को दुनिया के केंद्र से उत्तर में बताया, हालांकि यह निश्चित नहीं है कि उस केंद्र का प्रतिनिधित्व किसने किया था। अनएक्सिमेन्डर ( c । 610 ईसा पूर्व -545 ईसा पूर्व) के विचार: बाद में ग्रीक लेखकों द्वारा भूगोल के सच्चे संस्थापक के रूप में माना जाता है, उनके उत्तराधिकारी द्वारा उद्धृत टुकड़ों के माध्यम से हमारे पास आते...

भूगोल (Geography)

भूगोल (ग्रीक γεωγραφία, भौगोलिक, शब्दशः "पृथ्वी विवरण" से) भूमि के अध्ययन, सुविधाओं, निवासियों और पृथ्वी की घटनाओं के लिए समर्पित विज्ञान का एक क्षेत्र है। पहला शब्द "γεωγραφία" शब्द का उपयोग करने वाला व्यक्ति था Eratosthenes (276-1 9 4 ईसा पूर्व)। भूगोल एक सर्व-शामिल अनुशासन है जो पृथ्वी और इसकी मानव और प्राकृतिक जटिलताओं को समझने की कोशिश करता है, न कि केवल वस्तुओं पर, लेकिन वे कैसे बदल गए हैं और कैसे हो सकते हैं। भूगोल अक्सर मानव भूगोल और भौगोलिक भूगोल की दो शाखाओं के संदर्भ में परिभाषित किया गया है। मानव भूगोल लोगों और उनके समुदायों, संस्कृतियों, अर्थव्यवस्थाओं के अध्ययन और जगह और स्थान के साथ और उनके संबंधों का अध्ययन करके पर्यावरण के साथ बातचीत का अध्ययन करती है। भौगोलिक भूगोल पर्यावरण, जल-जल क्षेत्र, जीवमंडल और भौगोलिक क्षेत्र जैसे प्राकृतिक वातावरण में प्रक्रियाओं और पैटर्न के अध्ययन के साथ संबंधित है। भौगोलिक अनुसंधान में चार ऐतिहासिक परंपराएं हैं: प्राकृतिक और मानवीय घटनाओं के स्थानिक विश्लेषण, स्थानों और क्षेत्रों के क्षेत्र के अध्ययन, मानव-भूमि...